उजाला बढ़ता गया

उजाला बढ़ता गया ये शहर भी बढ़ता गया।
शहर से गावों तक ये रेला भी बढ़ता गया।
झीलों से पानी और नदियों से रेला भी ghatata गत्ता गया।
शहरों की नालिय और सडको का किनारा बढ़ता गया।
में निकला था थामने को दिल लेकिन मेरा जखम भी बढ़ता गया।
आदमी अपनी ताकत से सब कुछ गढ़ता गया।
जमीन की ताकत को अपनी मुट्ठी में मलता गया।
उज्जला बढ़ता गया।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

DOT COM DOT COM

Bhavri Devi

विभत्स हूँ .. विभोर हूँ ... मैं समाधी में ही चूर हूँ .