Ekram Rajasthani
कोई बलंदी, कुछ गहराइयों में उलझे हैं।
लोग, सब अपनी ही परछाइयों में उलझे हैं।
बनायेंगे भला, किस तरहा अपना मुस्तकबिल,
जो लोग-माजी के कुछ वाकयों में उलझे हैं।
सामने होते जो दुश्मन, तो हम निकल जाते,
आपको कैसे कहें, दोस्तों में उलझे हैं।
गजल अवाम के दिल में उतर चुकी कब की,
और शौरा, रदीफ, काफयों में उलझे हैं।
मकाम, शायरी में कुछ भी नहीं है लेकिन
हमारे दोस्त, गलत फहमियों में उलझे हैं।
रदीफ भूल गए अपनी जन्दगी की जो,
हमेशा उलझे हुए काफियों में उलझे हैं। स
आँखों से दर-बाम का, रिश्ता नहीं रहा।
आपस में, सुब्हो शाम का, रिश्ता नहीं रहा।
वो बेवफा नहीं है, फकत इतनी बात है,
हमसे, दुआ, सलाम का, रिश्ता नहीं रहा।
सारा जमाना घूम के, हम देख चुके हैं,
अब कोई भी तो काम का, रिश्ता नहीं रहा।
फुट पाथ पे बिकते हैं, खिलौनों की तरह से,
दुनिया में, बिना दाम का रिश्ता नहीं रहा।
जो दिल में धडकते थे, कभी, दोस्त की तरह
अब उनसे भी, इकराम का, रिश्ता नहीं रहा।
mere Blog pe
इकराम राजस्थानी
Comments
Post a Comment