EK kavita
मत समझिये कि मैं औरत हूँ, नशा है, मुझमें माँ भी हूँ बहन भी, बेटी भी, दुआ है मुझमें हुस्न है, रंग है, खुशबू है, अदा है मुझमें मैं मुहब्बत हूँ, इबादत हूँ, वघ है मुझमें कितनी आसानी से कहते हो कि क्या है मुझमें जब्त है, सब्र-सदाकत है, अना है मुझमें मैं फकत जिस्म नहीं हूँ कि फना हो जाऊं आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझमें मुझको करता है खबरदार खता से पहले मुझको इतनी है तसल्ली कि खुदा है मुझमें इक ये दुनिया जो मुहब्बत में बिछी जाये है एक वो शख्स जो मुझसे ही खफा है मुझमें अपनी नजरों में ही कद आज बढा है अपना जाने कैसा ये बदल आज हुआ है मुझमें दुश्मनों में भी मेरा जिक्र ‘किरण’ है अक्सर बात कोई तो जमाने से जुदा है मुझमें ... पते सहरा को दरिया दे क्या कोई ऐसा भी है खुश्क तोहफे में गुडया दे क्या कोई ऐसा भी है बादल ने तो छला हमेशा रस्ता तकती फसलों को सूखे खेतों को हरिया दे क्या कोई ऐसा भी है फिक्र-तनावों के चलते अब पलक कहाँ मुंद पाती है जो जगरातों को निंदिया दे क्या कोई ऐसा भी है ढोते फिरते हैं बेमकसद हम अपनी सांसों का बोझ हमको जीने का जरिया दे क्या कोई ऐसा भी है। स आँखों को जो पनिया दे क्या कोई ऐसा भी है दिन-भर भूखे-प्यासे बच्चे रोते-रोते सोये हैं ख्वाब आँखों को अब बढया दे क्या कोई ऐसा भी है नन्ही बिटिया को घर में ही सब अनदेखा करते हैं उसको
Kavita kiran ji
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