hastimal hasti

अच्छे-अच्छे बचते हैं 
सच को दार समझते हैं 
तुमसे तो काँटे अच्छे 
सीधे-सीधे चुभते हैं 
फूलों की दूकानों के 
पत्थर तलक महकते हैं 
सबके बस का रोग नहीं 
जिसे फकीरी कहते हैं 
फूल महकने वाले तो 
खिलते-खिलते-खिलते हैं। 

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