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Showing posts from February, 2015

me

मैं  जो मुझमें मुझको दिखता है वो मैं हूँ क्या ?  इतना कुछ है भीतर भीतर थोडा सा दिख जाता बाहर जो खुद अपने से छिपता है वो मैं हूँ क्या ?  दिखने को जो ठाट हैं सच में तो बस हाट लगे हैं इन हाटों पर जो बिकता है वो मैं हूँ क्या ?  मैं चलता हूँ भटक-भटक कर कहीं ठहरता कभी ठिठक कर एक जगह पर जो टिकता है वो मैं हूँ क्या ?  जगह जगह पे अक्षर आते मेरे मन में अक्सर गाते इन गीतों को जो लिखता है वह मैं हूँ क्या ? mere blog me Mradul ji

this valentine day

मुस्कान और सुगन्ध  पुष्प ! कल तुम मुरझा जाओगे फिर क्यों मुस्कुराते हो ? व्यर्थ में यह ताजगी किसलिए लुटाते हो ?  फूल चुप रहा - इतने में एक तितली आई क्षण भर आनन्द लिया, उड गई एक भौंरा आया गान सुनाया, चला गया सुगन्ध बटोरी, आगे बढ गया खेलते हुए एक बालक ने स्पर्श सुख लिया रूप-लावण्य को निहारा फिर खेलने लग गया ।  तब फूल बोला - मित्र् ! क्षण भर को ही सही मेरे जीवन ने कितनों को सुख दिया है क्या तुमने कभी ऐसा किया है ? कल की चिन्ता में आज के आनन्द में विराम क्यों करूँ ? माटी ने जो रूप, रस, गंध और रंग दिया है उसे बदनाम क्यों करूँ*?

sohan prakash

 अब उसे भी याद कर !  झूठ की बुनियाद पर, रिश्ते बनाना छोड दे।  पंछियों को जाल में अपने फंसाना छोड दे।।  जिस्म ताकतवर जो है, तो दूसरों की कर मदद,  पर किसी कमजोर को, ताकत दिखाना छोड दे।।  वो भी इक इन्सान है, मुफलिस हुआ तो क्या हुआ,  प्यार से कर बात उसका, दिल दुखाना छोड दे।।  नेकियां ही आदमी को जिन्दा रखती हैं सदा,  बे वजह ही तू किसी को अब सताना छोड दे।।  देखता है ’वो‘ सभी कुछ और देता है सजा,  तुझ को जुल्मों के लिये, चाहे जमाना छोड दे।।  कर लिया सब ऐश ’सोहन‘ अब उसे भी याद कर,  कम बचा है वक्त इस का यूं गंवाना छोड दे।।  sohan prakash mere blog pe