me
मैं
जो मुझमें
मुझको दिखता है
वो मैं हूँ क्या ?
इतना कुछ है भीतर भीतर
थोडा सा दिख जाता बाहर
जो खुद अपने से छिपता है
वो मैं हूँ क्या ?
दिखने को जो ठाट हैं
सच में तो बस हाट लगे हैं
इन हाटों पर जो बिकता है
वो मैं हूँ क्या ?
मैं चलता हूँ भटक-भटक कर
कहीं ठहरता कभी ठिठक कर
एक जगह पर जो टिकता है
वो मैं हूँ क्या ?
जगह जगह पे
अक्षर आते
मेरे मन में अक्सर गाते
इन गीतों को जो लिखता है
वह मैं हूँ क्या ?
mere blog me Mradul ji
जो मुझमें
मुझको दिखता है
वो मैं हूँ क्या ?
इतना कुछ है भीतर भीतर
थोडा सा दिख जाता बाहर
जो खुद अपने से छिपता है
वो मैं हूँ क्या ?
दिखने को जो ठाट हैं
सच में तो बस हाट लगे हैं
इन हाटों पर जो बिकता है
वो मैं हूँ क्या ?
मैं चलता हूँ भटक-भटक कर
कहीं ठहरता कभी ठिठक कर
एक जगह पर जो टिकता है
वो मैं हूँ क्या ?
जगह जगह पे
अक्षर आते
मेरे मन में अक्सर गाते
इन गीतों को जो लिखता है
वह मैं हूँ क्या ?
mere blog me Mradul ji
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